05 February, 2010

बीत न जाएँ तन्हा कही,
उम्रका ये छोटा लम्हा कही,
क्यों रहे फासले हममे युही,
मिटादे न रहे दूरियां कही,
सांसे निचोड़के जी लेंगे,
दर्द दवाकी तरह पी लेंगे,
फिर अलग होगी सुबह कोई,
फिर अलग होगी शाम कोई
बीत न जाएँ तन्हा कही,
उम्रका ये छोटा लम्हा कही.


"rangat"
रातभर डूबोता रहा,
चांदनीसे धोता रहा,
वो तेरी यादोंकी मोहरे
रातभर संजोता रहा,
गलीके नुक्कड़पे वो इन्ताजरकी मोहर
वो तेरा मेरे घरके पाससे गुजरनेकी मोहर,

और नजाने ऐसी कितनी मोहरे है यादोमें संभाली मैंने,
कुछ साफ़ हो चुकी है,
कुछ अभी भी बाकी है,
फिर सोचता हु ,खर्चभी कहा करूँगा इसको,
कोइ खरीदार भी नहीं है, और
ना ही इसकी कोई कीमत है बाजारमे,
सोचता हु तुम्हारे पास ही भेज दू इसे,
तुम्हारी पहेचान हो अगर,
शायद तुम्हे कुछ दाम मिलजाए,
शायद तुमसे बीकजाए,
मुफलिसी है अभी मेरी
तो मेरी भी कुछ आमदनी हो जाए,
क्योकि........,
मैं तो इसे बेचने से रहा,
बस,
रातभर डूबोता रहा,
चांदनीसे धोता रहा,
वो तेरी यादोंकी मोहरे
रातभर संजोता रहा.

"rangat"

शब्द परिचय:
मुफलिसी : गरीबी