14 March, 2010

इन खुली हवाओ में दम घुटता है मेरा,
उन चार दीवारों में साँस लेने दो,

रोशनीकी अब कोइ तरक़ीब बाकी नहीं,
जला चुके आशियानाभी,अब मुजे अंधेरो में रहने दो,

पंख जो मिले थे दो, वो कट चुके,
बहुत उड़ लिया मैंने,अब ज़मीपे रहने दो,

ना ही वो पीने के काम आऐगा,
ना ही आग बूजाने,बहेता है जो पानी आँखोंसे,
अब उसे बहेने दो।

इन खुली हवाओ में दम घुटता है मेरा,
उन चार दीवारोंमें साँस लेने दो......


"rangat"

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